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आतंक का कोई मजहब नहीं होता

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संदीप कुमार मिश्र: पहले 9/11(अमेरिका)…फिर 26/11(भारत)….और अब 13/11(फ्रांस)। सैकड़ों,हजारों की तादाद में लाशें ही लाशें…रक्तरंजित शरीर…फिजाओं में बारुद की गंध…भागते दौड़ते लोग…कानो में सुनाई देता करुण क्रंदन…बिलख-बिलख कर,रोने की आवाजें..ह्रदय को चीर देने वाला सन्नाटा…तड़..तड़..तड़..तड़… धांय..धांय..बम..आहहह..हे गाड…हे राम…या अल्लाह…वाहे गुरु…की जुबान से निकलती अंतिम आवाजें..मित्रों आतंकवाद हमें यही देता है  READ MORE

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