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कुलधरा:कहां गए 84 गांव के लोग…?

संबोधन
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संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों ये कहानी सुनने में आपको फिल्मी जरुर लगेगी लेकिन सौ फीसदी सच है। जरा गौर करेंगे-ये दास्तां है उस चमन की,जहां की बस्तियां कभी गुलजार हुआ करती थीं।जहां की उन्नती,तरक्की और खुशहाली औरों को मुंह चिढ़ाती थी।लेकिन ना जाने वो कौन सी मनहुस घड़ी थी,जब इस गुलजार चमन में एक क्रुर माली की नज़र पड़ी और ये बाग अपने ही बागवान की गंदी नज़र से बेजार हो गया।कहते हैं खूबसूरती ईश्वर का दिया हुआ एक वरदान है,लेकिन कभी-कभी यह शाप भी बन जाती है। दरअसल जैसलमेर से लगभग 20किलोमीटर दूर एक गांव जो इस बात की गवाही देता है जो अब वीरान हो चुका है।अब इस गांव की हर शामे-ए-सुबह उदास है। दोस्तों पत्थरों की इस सुनसान बस्ती में फैला ये सन्नाटा जुर्म का है। कहते हैं वर्षों पहले यहां जिंदगी क्या उजड़ी  परिंदों की परवाज भी थम कर रह गई।बस्ती पर हावी ये खामोशी है जो घुलने के बाद भी आवाज पुर्जा-पुर्जा हो जाती है।ये ना तो श्मशान है,और ना ही कब्रिस्तान।दरअसल जैसलमेर से करीब 20किलोमीटर की दूरी पर पत्थरों से बनी ये वो 84 बस्तियां हैं या यूं कहें कि 84 गांव हैं जो कभी पालिवाल ब्राह्मणों के गांव  थे।इन पत्थरों में दफन 84 गांवों की वो खौफनाक दास्तां है जो एक रात में ही बस्ती से पत्थर बन गयी।  READ MORE

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